मंगलवार, 24 जुलाई 2012

लंदन ओलंपिक 2012, इन पर टिकी है भारत की उम्मीदें

           दुनिया भर के खेल प्रेमियों की निगाहें २७ जुलाई से १२ अगस्त तक लंदन के विभिन्ना स्टेडियमों पर लगी रहेंगी, क्योंकि विश्व के सभी प्रमुख खिलाड़ी वहाँ पदकों के लिए जद्दोजहद करते हुए नजर आएँगे। २६ खेलों में ३०२ स्वर्ण पदक दाव पर होंगे जिनके लिए २०४ देशों के करीब १०४९० खिलाड़ी भाग्य आजमाएँगे। इस आयोजन के साथ ही लंदन के नाम एक विशिष्ट उपलब्धि जुड़ जाएगी, वह तीन बार ओलिम्पिक खेलों की मेजबानी करने वाला पहला शहर बन जाएगा। बीजिंग में २००८ में हुए पिछले ओलिम्पिक खेलों में भारत ने ३ पदक हासिल किए थे जो उसका अभी तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है। इस बार १३ खेलों में भारत का ८१ सदस्यीय दल हिस्सा लेगा। यह खेल महाकुंभ में भारत का अब तक का सबसे बड़ा दल होगा। भारत के लिए यह सबसे सफल ओलिम्पिक साबित होने का अनुमान है। देखना होगा कि करोड़ों लोगों की उम्मीदों पर खरे उतरकर विजेंदरसिंह, एमसी मैरीकॉम, अभिनव बिंद्रा, गगन नारंग, दीपिका कुमारी, साइना नेहवाल, सुशील कुमार, लिएंडर पेस व सानिया मिर्जा पदक दिलवा पाते हैं या नहीं।
           ओलिम्पिक पदक हर खिलाड़ी का सबसे बड़ा सपना होता है, लेकिन खेल महाकुंभ के आते ही भारतीयों के मन को एक ही सवाल कचोटता है कि हर क्षेत्र में दुनिया के सभी देशों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने वाला यह देश खेल के क्षेत्र में क्यों फिसड्डी रह जाता है। एक अरब से ज्यादा की आबादी और किसी एक ओलिम्पिक में अभी तक जीते हैं सर्वाधिक ३ पदक। ये आँकड़े शर्मसार करने वाले है, लेकिन २०१० कॉमनवेल्थ गेम्स के आयोजन के बाद से देश के खेल स्तर में जबर्दस्त सुधार आया है। अत्याधुनिक सुविधाओं और खिलाड़ियों की तैयारियों को देखते हुए इस बार पूरा विश्वास है कि लंदन ओलिम्पिक भारत के लिए अभी तक के सबसे सफल ओलिम्पिक साबित होंगे।

निशानेबाजी

        निशानेबाजी से सभी को काफी उम्मीदें है। अभिनव बिंद्रा बीजिंग ओलिम्पिक खेलों में देश के पहले व्यक्तिगत स्वर्ण पदक विजेता बने थे। पिछले दो ओलिम्पिक खेलों (एथेंस और बीजिंग) से भारत इस खेल में पदक जीत रहा है और इस बार तो हमारे ११ निशानेबाज लंदन में चुनौती पेश करने उतरेंगे। निशानेबाजी में भारत एक महाशक्ति बन चुका है और लंदन में वह कुछ पदक जीतकर इस बात पर मुहर लगाना चाहेगा। १० मीटर एयर राइफल स्पर्धा में भारत एक से ज्यादा पदक भी जीत सकता है, क्योंकि हमारे पास गत ओलिम्पिक चैंपियन बिंद्रा और विश्व कीर्तिमानधारी गगन नारंग मौजूद हैं। बिंद्रा ने अभ्यास स्पर्धाओं में अच्छा प्रदर्शन किया है। बिंद्रा को कड़ी चुनौती अपने ही देश के नारंग से मिलेगी। दो ओलिम्पिक खेलों में असफल रह चुके विश्व कीर्तिमानधारी नारंग तीसरी बार सफल होने के लिए हरसंभव प्रयास कर रहे हैं।            निशानेबाजी में जहाँ सारा ध्यान बिंद्रा और नारंग पर रहेगा, वहीं डबल ट्रेप में रोंजन सोढ़ी कमाल दिखाने को तैयार हैं। दुनिया का यह नंबर एक निशानेबाज लंदन ओलिम्पिक को यादगार बनाना चाहता है। 

तीरंदाजी 


          तीरंदाजी में भारत ने पिछले कुछ वर्षों में जबर्दस्त तरक्की की है और इसका सबूत है कि इस बार छः भारतीय तीरंदाज लंदन में अपनी चुनौती पेश करेंगे। देश को सबसे ज्यादा उम्मीद दुनिया की नंबर एक तीरंदाज दीपिका कुमारी से रहेगी। २००६ में १२ वर्ष की उम्र में खेल में पदार्पण करने के बाद से दीपिका ने सफलताओं के कई सोपान चढ़े हैं। १८ वर्षीया दीपिका का सपना है ओलिम्पिक पदक जीतना और उनके द्वारा इस बार इतिहास रचे जाने के प्रबल आसार हैं। दीपिका दक्षिण कोरियाई धुरंधरों का सामना करने के लिए पूरी तरह तैयार है। दीपिका व्यक्तिगत वर्ग के अलावा एल. बोम्बायला देवी और चक्रोवेलू स्वूरो के साथ टीम वर्ग में भी हिस्सा लेंगी। जयंत तालुकदार, राहुल बनर्जी और तरूणदीप रॉय की पुरुष रिकर्व टीम सही समय पर फॉर्म में आई है और उन्होंने इस खेल में भारत के पदक जीतने की संभावनाओं को बढ़ा दिया है। 

बैडमिंटन


          बैडमिंटन में भारतीय चुनौती की अगुवाई साइना नेहवाल करेंगी और पहली बार पाँच भारतीय खिलाड़ी ओलिम्पिक बैडमिंटन में चुनौती पेश करेंगे। भारतीय बैडमिंटन में इस समय एक ही सितारा दैदीप्यमान है और वह है साइना। चीनी प्रभुत्व को चुनौती देते हुए साइना ने कुछ समय पूर्व इंडोनेशियाई ओपन खिताब जीता था। उन्होंने वांग यिहान के अलावा सभी प्रमुख चीनी खिलाड़ियों को पराजित किया है। पिछले दिनों थाईलैंड ओपन और इंडोनेशियाई ओपन खिताब हासिल कर वे सही समय पर पूरी लय में नजर आ रही हैं और अब उनके सामने ओलिम्पिक में पदक नहीं जीत पाने के मिथक को तोड़ने और इतिहास बनाने की चुनौती रहेगी। पुरुषों में पी. कश्यप कुछ उलटफेर करने में सक्षम हैं। दो वर्गों में भाग लेने वाली पहली भारतीय महिला ज्वाला गुट्टा अपने जोड़ीदार वी. डीजू के साथ मिश्रित युगल वर्ग में और अश्विनी पोनप्पा के साथ महिला युगल वर्ग में चुनौती पेश करेंगी। 

टेनिस 


             प्रमुख खिलाड़ियों के अहं के टकराव के चलते भारतीय टेनिस टीम चयन विवाद काफी सुर्खियों में रहा। खिलाड़ियों के सामने अब चयन विवाद की कड़वाहट को भुलाते हुए एकजुट होकर देश के लिए पदक जीतने की चुनौती रहेगी। सानिया मिर्जा और लिएंडर पेस की जोड़ी से पदक की उम्मीद की जा सकती है। वैसे यह जोड़ी २०१० कॉमनवेल्थ गेम्स के बाद एक साथ नहीं खेली है, लेकिन दोनों के अनुभव को देखते हुए इन्हें तालमेल बैठाने में मुश्किल नहीं होनी चाहिए। महेश भूपति और रोहन बोपन्नाा की जोड़ी को पदक के दावेदार के रूप में नहीं देखा जा रहा है। वैसे इन दोनों पर अपने निर्णय को सही साबित करने का अतिरिक्त दबाव भी है। अब देखना होगा कि ये क्या कर पाते हैं। 

हॉकी


              ओलिम्पिक में भारत की पहचान हॉकी से रही है। बीजिंग ओलिम्पिक के वक्त भारत को बहुत शर्मिंदगी झेलनी पड़ी थी जब आठ बार का विजेता यह देश हॉकी में पात्रता भी हासिल नहीं कर पाया था। इस बार टीम इंडिया ने क्वालीफाई तो कर लिया है, लेकिन पदक जीतना अभी भी दूर की कौड़ी है। भारतीय कोच माइकल नॉब्स स्वयं टीम के शीर्ष छः में पहुँचने का लक्ष्य लेकर चल रहे हैं, यदि ऐसा भी हो जाता है तो यह टीम का शानदार प्रदर्शन माना जाएगा।


मुक्केबाजी


            देश को इस बार सबसे ज्यादा पदकों की उम्मीद मुक्केबाजी में है। विजेंदरसिंह की अगुवाई में विकास कृष्णन, शिवा थापा और एमसी मैरीकॉम को पदक के दावेदारों के रूप में देखा जा रहा है। विजेंदर ने चार वर्ष पहले बीजिंग ओलिम्पिक में कांस्य पदक जीतकर इतिहास रचा था। उनकी इस सफलता से भारतीय मुक्केबाजी जगत ने ऐसी प्रेरणा ली कि इन चार वर्षों में उसका पूरा नक्शा ही बदल गया। २००९ विश्व चैंपियनशिप के कांस्य पदक विजेता विजेंदर इस समय भले ही फॉर्म में नहीं हों, लेकिन उनकी चुनौती को कोई भी हलके में नहीं लेता है। विजेंदर के बाद विकास कृष्णन पर सबकी निगाहें टिकी रहेंगी। ६९ किग्रा वर्ग में विश्व यूथ चैंपियनशिप और २०१० एशियाई खेलों के स्वर्ण पदक विजेता विकास स्वर्ण के इरादे से लंदन में रिंग में उतरेंगे। 

सबसे युवा मुक्केबाज शिवा थापा भी उलटफेर कर पदक जीतने में सक्षम हैं। महिलाओं में पाँच बार की विश्व चैंपियन २९ वर्षीया एमसी मैरीकॉम के पास अपने ओलिम्पिक पदक के सपने को साकार करने का पूरा मौका है।महिला चक्का फेंक में कृष्णा पूनिया को पदक के दावेदार के रूप में देखा जा रहा है। दिल्ली कॉमनवेल्थ गेम्स की स्वर्ण पदक विजेता कृष्णा ने ग्वाँगझू एशियाई खेलों में कांस्य पदक अर्जित किया था। उनके प्रदर्शन में इसके बाद से लगातार सुधार आ रहा है, लेकिन वे भी जानती हैं कि लंदन में उनके सामने चुनौती आसान नहीं होगी।सुशील कुमार ने बीजिंग ओलिम्पिक में देश को १९५२ के बाद कुश्ती में पदक दिलाया था। २०१० विश्व चैंपियनशिप के विजेता सुशील से इस बार भी देश को पदक की उम्मीद रहेगी। फ्रीस्टाइल के ६६ किग्रा वर्ग में हिस्सा लेने वाले सुशील पिछले कुछ समय से चोटों से जूझ रहे थे, लेकिन अब वे पूरी तरह फिट हैं और उन्हें विश्वास है कि वे लंदन में भी चमत्कार दिखाएँगे। सुशील के अलावा २०१० कॉमनवेल्थ गेम्स में स्वर्ण पदक जीतने वाले योगेश्वर दत्त (६० किग्रा) से भी पदक की उम्मीद रहेगी। नरसिंह यादव (७४ किग्रा) और अमित कुमार (५५ किग्रा) भी चमत्कार कर सकते हैं। एकमात्र महिला पहलवान गीता फोगट की चुनौती को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।दुनिया भर के खेल प्रेमियों की निगाहें २७ जुलाई से १२ अगस्त तक लंदन के विभिन्ना स्टेडियमों पर लगी रहेंगी, क्योंकि विश्व के सभी प्रमुख खिलाड़ी वहाँ पदकों के लिए जद्दोजहद करते हुए नजर आएँगे। २६ खेलों में ३०२ स्वर्ण पदक दाव पर होंगे जिनके लिए २०४ देशों के करीब १०४९० खिलाड़ी भाग्य आजमाएँगे। इस आयोजन के साथ ही लंदन के नाम एक विशिष्ट उपलब्धि जुड़ जाएगी, वह तीन बार ओलिम्पिक खेलों की मेजबानी करने वाला पहला शहर बन जाएगा। बीजिंग में २००८ में हुए पिछले ओलिम्पिक खेलों में भारत ने ३ पदक हासिल किए थे जो उसका अभी तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है। इस बार १३ खेलों में भारत का ८१ सदस्यीय दल हिस्सा लेगा। यह खेल महाकुंभ में भारत का अब तक का सबसे बड़ा दल होगा। भारत के लिए यह सबसे सफल ओलिम्पिक साबित होने का अनुमान है। देखना होगा कि करोड़ों लोगों की उम्मीदों पर खरे उतरकर विजेंदरसिंह, एमसी मैरीकॉम, अभिनव बिंद्रा, गगन नारंग, दीपिका कुमारी, साइना नेहवाल, सुशील कुमार, लिएंडर पेस व सानिया मिर्जा पदक दिलवा पाते हैं या नहीं।ओलिम्पिक पदक हर खिलाड़ी का सबसे बड़ा सपना होता है, लेकिन खेल महाकुंभ के आते ही भारतीयों के मन को एक ही सवाल कचोटता है कि हर क्षेत्र में दुनिया के सभी देशों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने वाला यह देश खेल के क्षेत्र में क्यों फिसड्डी रह जाता है। एक अरब से ज्यादा की आबादी और किसी एक ओलिम्पिक में अभी तक जीते हैं सर्वाधिक ३ पदक। ये आँकड़े शर्मसार करने वाले हैैं, लेकिन २०१० कॉमनवेल्थ गेम्स के आयोजन के बाद से देश के खेल स्तर में जबर्दस्त सुधार आया है। अत्याधुनिक सुविधाओं और खिलाड़ियों की तैयारियों को देखते हुए इस बार पूरा विश्वास है कि लंदन ओलिम्पिक भारत के लिए अभी तक के सबसे सफल ओलिम्पिक साबित होंगे।


एथलेटिक्स


          महिला चक्का फेंक में कृष्णा पूनिया को पदक के दावेदार के रूप में देखा जा रहा है। दिल्ली कॉमनवेल्थ गेम्स की स्वर्ण पदक विजेता कृष्णा ने ग्वाँगझू एशियाई खेलों में कांस्य पदक अर्जित किया था। उनके प्रदर्शन में इसके बाद से लगातार सुधार आ रहा है, लेकिन वे भी जानती हैं कि लंदन में उनके सामने चुनौती आसान नहीं होगी।

कुश्ती 


           सुशील कुमार ने बीजिंग ओलिम्पिक में देश को १९५२ के बाद कुश्ती में पदक दिलाया था। २०१० विश्व चैंपियनशिप के विजेता सुशील से इस बार भी देश को पदक की उम्मीद रहेगी। फ्रीस्टाइल के ६६ किग्रा वर्ग में हिस्सा लेने वाले सुशील पिछले कुछ समय से चोटों से जूझ रहे थे, लेकिन अब वे पूरी तरह फिट हैं और उन्हें विश्वास है कि वे लंदन में भी चमत्कार दिखाएँगे। सुशील के अलावा २०१० कॉमनवेल्थ गेम्स में स्वर्ण पदक जीतने वाले योगेश्वर दत्त (६० किग्रा) से भी पदक की उम्मीद रहेगी। नरसिंह यादव (७४ किग्रा) और अमित कुमार (५५ किग्रा) भी चमत्कार कर सकते हैं। एकमात्र महिला पहलवान गीता फोगट की चुनौती को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।

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